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चेहरे बदलने पर भी नहीं खत्म हुई गुटबाजी, फिर गुटबाजी का इतिहास दोहराने की तैयारी में कांग्रेस!

चंडीगढ़ : हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद हरियाणा कांग्रेस में फिर से एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी का सिलसिला शुरू हो चुका है। ऐसे में कांग्रेस के कईं नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर गलत टिकट वितरण का आरोप लगा रहे हैं। इतना ही नहीं कभी भूपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री बनवाने में अहम भूमिका निभाने वाली कुमारी सैलजा भी उनसे दूरी बनाए हुए है। खैर हरियाणा कांग्रेस में ये कोई नई बात नहीं है।

कांग्रेस के इतिहास पर गौर करें तो सत्ता से बाहर होने पर हमेशा हरियाणा कांग्रेस में ऐसे ही समीकरण बने है। हरियाणा कांग्रेस में हमेशा से ही गुटबाजी का दौर देखा जाता है, केवल चेहरे और नाम बदलते है, लेकिन गुटबाजी खत्म नहीं होती। 1987 में जब देवीलाल ने हरियाणा में सरकार बनाई तो कांग्रेस केवल 5 विधायकों तक ही सिमटकर रह गई थी। उस समय कांग्रेस आलाकमान ने भजनलाल, बंसीलाल और बीरेंद्र सिंह की गुटबाजी से हटकर पानीपत से पहली बार जीतकर विधायक बने बलबीर पाल शाह को हरियाणा में पार्टी की कमान सौंपी थी। उस समय भी कांग्रेस की गुटबाजी ने उनकी राजनीति को सफल नहीं होने दिया था। इसके बाद कांग्रेस ने 1991 में चौधरी बीरेंद्र सिंह को हरियाणा में पार्टी प्रमुख बनाया।

बीरेंद्र सिंह की अगुवाई में हुए चुनाव में कांग्रेस ने हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 51 सीट पर जीत दर्ज की थी। उस समय कांग्रेस की ओर से भजनलाल को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके अलावा 1996 से 2004 तक हरियाणा में कांग्रेस की कमान क्रमश: भूपेंद्र हुड्डा, मास्टर राम प्रकाश, बीरेंद्र सिंह और भजनलाल को दी गई, लेकिन उस समय भी कांग्रेस में गुटबाजी ही हावी रही। 2005 में हरियाणा में कांग्रेस भजनलाल के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी। उस समय कांग्रेस नें 90 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन चुनाव के बाद कांग्रेस हाई कमान ने भजनलाल की बजाए भूपेंद्र हुड्डा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया।

हुड्डा 2014 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2014 में मोदी लहर के चलते हरियाणा में बीजेपी ने एक तरफा बहुमत हासिल किया और मौजूदा समय में भी बीजेपी ही सत्ता में है, लेकिन सत्ता से बाहर होने के बावजूद कांग्रेस में आज भी गुटबाजी का पुराना इतिहास दोहराया जा रहा है। लोकसभा के ताजा परिणाम के बाद बने हालात भी यहीं जाहिर कर रहे हैं। एक ओर जहां कैप्टन अजय यादव लोकसभा के परिणाम के बाद भूपेंद्र हुड्डा पर गलत टिकट वितरण का आरोप लगा रहे हैं। वहीं कभी हुड्डा के साथ रहने वाली कुमारी सैलजा भी उनसे पिछले काफी समय से लगातार दूरी बनाए हुए है। दिल्ली में कांग्रेस की मीटिंग के दौरान भी कुमारी सैलजा अकेले ही दिल्ली गई, जबकि शेष 4 नवनिर्वाचित सांसद भूपेंद्र हुड्डा के साथ दिल्ली पहुंचे थे।

खैर अब जबकि हरियाणा में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है। ऐसे में कांग्रेस की ये गुटबाजी एक बार फिर से उसके भविष्य की राजनीति पर भारी पड़ सकती है। देखना होगा कि क्या बीते 10 साल से हरियाणा की सत्ता से बाहर कांग्रेस इस गुटबाजी से उभरकर चुनावी मैदान में उतर पाएगी या फिर पूर्व की तरह गुटों में बंटकर ही चुनावी मैदान में उतरेगी?

NEWS SOURCE : punjabkesari

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