पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को कच्चे कर्मचारियों के हक में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को छह महीने के भीतर, 2003 और 2011 की नीतियों के तहत सभी पात्र कच्चे कर्मचारियों को नियमित करना होगा। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1996 की नीति के तहत अब किसी भी कर्मचारी को नियमित नहीं किया जाएगा।
हजारों कर्मचारियों ने, जो राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, नगर निगमों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अनुबंध, अंशकालिक या अस्थायी तौर पर कार्यरत हैं, नियमितीकरण की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। इन कर्मचारियों ने 1996, 2003 और 2011 की नीतियों के तहत नियमित करने की अपील की थी। कोर्ट ने अब आदेश दिया है कि सभी कर्मियों को निर्धारित प्रक्रिया के तहत 2003 और 2011 की नीति के आधार पर छह महीने के भीतर नियमित किया जाए।
इसके अतिरिक्त, यदि कोई कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुका है, तो उसे पेंशन और अन्य वित्तीय लाभ पुनर्निर्धारित किए जाएंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि जो कर्मचारी 2003 और 2011 की नीति के तहत पात्र नहीं होंगे, उनके मामले को 2024 में लागू होने वाले नए अधिनियम के तहत देखा जाएगा।
हाईकोर्ट ने 2014 की नीति पर भी कड़ी टिप्पणी की और इसे सुप्रीम कोर्ट के 2006 के उमा देवी फैसले के खिलाफ बताया। कोर्ट ने कहा कि 2014 की अधिसूचना बिना किसी ठोस आधार के थी, और यह सरकारी निर्देशों का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसी भी कर्मचारी को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाए।
यह फैसला हरियाणा के कच्चे कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत साबित हो सकता है, जो दशकों से अस्थायी स्थिति में काम कर
हरियाणा के कच्चे कर्मचारियों के हक में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, सरकार को 6 महीने में नियमित करने का आदेशरहे थे।